— तेरी तस्वीर से बातें –
तनहा बैठा था
सोचा क्या करूँ
किस तरफ दिमाग
को ले जाऊं
खामोशी का माहौल था
मन में मायूसी सी थी
दिमाग उछल रहा था
क्या करूँ, क्या न करूँ
नजर घुमाई तो
सामने तेरी जेहन में
तस्वीर ही नजर आयी
गुफतगू क्या करता
तेरी यादों में खो गया
एक एक कर के
तेरी तस्वीर के साथ
बस मैं भी हो लिया
न जाने कहाँ ले गयी
तेरी यादें और वो तस्वीरें
जहाँ कभी साथ बैठकर
दुनिआ से होकर बेखबर
खो जाया करते थे
अनगिनत ख्यालात
मानो ऐसे आने लगे
जैसे घर में नहीं
बैठे हो किसी नदीया किनारे
सच है दोस्त
तन्हाई में लोग परेशां तो होते हैं
पर जब तुम सा साथ हो
तो शायद बोर भी नहीं होते हैं
ऐसे ही आ जाया करो
कम से कम मन को
लगा तो जाया करो
साक्षात न सही
खयालात से
तस्वीरों के साथ साथ
अपना एहसास दिला जाया करो
अजीत कुमार तलवार
मेरठ