तेरी जिल्लत में रहना सीख लिया
जिल्लत में रहना सीख लिया
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रो -रो कर हँसना सीख लिया
गम में मुस्कराना सीख लिया
हम मालिक थे अपनी मर्जी के
तेरी रज़ा में रहना सीख लिया
नभ में हम तो स्वतंत्र परिंदे थे
तेरे दर पर रहना सीख लिया
शमशीरों से हम टकरा जाते थे
तेरी म्यान में रहना सीख लिया
निगाहों में निगार तुम्हारी थी
तेरी नजर में रहना सीख लिया
निगारिश में तुझे हम लिखते थे
तहरीर में लिखना सीख लिया
नफ़ासत से कोसों दूर थे हम
तहबीज में बोलना सीख लिया
तुम मेरी जज्बाती इस्तेदाद थी
तेरी जुर्रात में रहना सीख लिया
सांसों की ताबीश में रहती थीं
तेरे तपन में रहना सीख लिया
तौहीन कभी नहीं सह पाते थे
ज़िल्लत में रहना सीख लिया
सुखविंद्र त़ौफ़ीक़ कुदरत की
रिनायत में रहना सीख लिया
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)