तेरी चाहत में
मेरा दिल डूब जाना चाहता था तेरी चाहत में।
मगर हर बार पीछे हट गया शायद शराफत में।।
न मंदिर में न मस्जिद में न पत्थर में मिला मुझको ।
दिखा रब तुझमें तो झुकता गया ये सिर इबादत में।।
न गाड़ी बंगला धन दौलत बड़ा व्यापार दे पाएं।
दें शिक्षा धर्म कर्मो संस्कारो को विरासत में।।
किया है प्रेम बेहद चाहे तुम जो भी सजा देदो।
मुझे मंजूर है रहना सनम तेरी हिरासत में।।
दिलों में ईर्ष्या छल भय 2मगर मुस्कान होंठों पे।
घरों घर चल रहा षडयंत्र जैसा हो सियासत में।।
मेरे दिल में धड़कते हो सदा रग रग में बहते हो।
बता लेकर कहाँ जाऊं तुझे मैं ऐसी हालत में।।
किया जब मुक्त दिल के पिंजरे से मत छटपटाओ तुम।
मगर इक शर्त है रख दो तुम्हारा दिल जमानत में।।
हुई जब जेब हल्की वज्न रिश्तों का हुआ हल्का।
नए किरदार देखे थे गरीबी और आफत में।।
भले ही आँख से आँसू बहे पर दिल बहुत रोया ।
झुका जब जब मेरा ये सिर शहीदों की शहादत में।।
बहुत दिन बाद आया ज्योति अपने प्यार का मौसम।
नहीं बर्बाद करना वक़्त ये सारा शिकायत में।।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव