तेरी इबादत करूँ, कि शिकायत करूँ
कोई रास्ता दिखा, मेरे खुदा मैं क्या करूॅ॑
तेरी इबादत करूॅ॑, या तो शिकायत करूॅ॑
पूछता हूँ तुझी से अब, बता मैं क्या करूँ
तेरी इबादत करूॅ॑, या तो शिकायत करूॅ॑
अपने ही हक से मुझे, महरूम क्यों रखा
हर खुशी के वास्ते यूॅ॑, भटकाए क्यूॅ॑ रखा
फल कभी मेहनत का, मुझको नहीं दिया
ये तो बता आखिर क्या, मैंने गुनाह किया
कुछ तो इल्जाम दे, मेरे खुदा मैं क्या करूं
तेरी इबादत करूॅ॑ या……………
निहारता तुझको रहा, ना ये आस्था छूटे
तुझसे किसी और का, यूॅ॑ विश्वास ना टूटे
तेरे सामने खड़ा रहा, मैं ये हाथ जोड़कर
तूॅ॑ देखता रहा बार-बार, दिल को तोड़कर
तूॅ॑ ही ना गर राह दे, मेरे खुदा मैं क्या करूॅ॑
तेरी इबादत करूॅ॑ या……………
तुने कसर न छोड़ी, कोई देखो गिराने में
मैं भी अडिग,अटल हूॅ॑, दो रोटी कमाने में
“V9द” के सब्र का, बहुत इम्तिहान है लिया
देना जवाब तुने खुदा, न्याय कौन सा किया
तूॅ॑ सामने से छिनता, मेरे खुदा मैं क्या करूं
तेरी इबादत करूॅ॑ या……………
स्वरचित:—
विनोद चौहान