तेरी आँख का काजल
घटा घनघोर से प्यारा तुम्हारी आँख का काजल
घनेरी साँझ से गहरा तुम्हारी आँख का काजल
तुम्हारी जुल्फ के साये में जब भी सांस लेता हूँ
हमारी जान लेता है तुम्हारी आँख का काजल
कभी राधा कभी मीरा कभी सीता बनाता है
तुम्हें नव रूप देता है तुम्हारी आँख का काजल
हिमालय की बुलंदी पर घाना जो मेघ दिखता है
उसी जैसा तेरे रुख पर तुम्हारी आँख का काजल
मृग कस्तूरी सा छाया है मेरी आँखों मे ये बसकर
मुझे पागल किये जाता तुम्हारी आँख का काजल
ऋषभ को तुम कहो राधे कहो चितचोर चाहे जो
मगर चित को चुराये है तुम्हारी आँख का काजल