तेरा ही बसेरा
#दिनांक:-5/8/2024
#शीर्षक :- बस तेरा ही बसेरा।
क्यूँ मांगते हो दिया हुआ अपना,
एक हसीन और जीवंत है वो सपना!
जिसे पाकर सांस लेती हूँ,
सांस के साथ आस करती हूँ ।
जब रात में नींद गायब आँखों से,
तब याद करती मुस्कुराती बातों से।
भिगो जाती प्रेम का अमृत रस,
सुकून दिलाती तेरा वजूद बस ।
डूबूॅ और डूबना और डूबते जाना,
अतल गहराई में पहुंच जाना।
एकटक तेरा यूँ देखना मुझको,
बिन बोले सब कहना मुझसे।
मीठे प्रेम का रसास्वादन लेती,
सुनहरा जीवन व्यतीत करती ।
सुबह शाम वक्त खोई-खोई,
गम तनहाई सब सोई-सोई।
खूबसूरत एकाएक स्वयं लगी,
मिलन उत्कंठा में श्रृंगार सजी।
कपोल अत्याधिक चमकने लगा,
चंचल चितवन और दमकने लगा!
आह……………..
और क्या कहूँ बस कहती रहूँ,
प्रेम कविता में समर्पण करूँ।
प्रेम-पाश में रोज रजनी सुलाये,
बाँहों में समेट प्रेम संगीत सुनाये।
रुक जाए रजनी न हो कभी सबेरा,
मेरे ह्दय में, बस तेरा ही बसेरा ।
उगी समतल पर विश्वास की घास,
पर न भाया तुम्हें शायद मेरा साथ……..।
(स्वरचित)
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई
8081213167