तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
शीर्षक : तेरा साथ है तो मुझे क्या कमी है
जीवन में हर किसी को, एक साथ चाहिए ।
हर ले संताप हृदय का, वो सहृदय हाँथ चाहिए ।
जानता हूँ, प्रति पल का साथ मुश्किल होता है ।
शरीर से नहीं, केवल आत्मिक अनुदान चाहिए ।
जीवन में हर किसी को, एक साथ चाहिए ।
आदमी इस जगत में अकेला ही था आया ।
ऐसा ही विधि का विधान और उसकी माया ।
सजानी पड़ती है किस्मत कर्म से संस्कार से ।
जूझना होता है हर किसी को, परिवर्तन के व्यापार से
पक्का डेरा यहाँ तो, कभी न किसी का बन पाया ।
आदमी इस जगत में अकेला ही था आया ।
रजो गुण , तमो गुण , सतो गुण , निर्मित संसार है ।
त्रिगुणात्मक उसकी लीला , यही कार्मिक व्यवहार है ।
किसी में कम किसी में अधिक ये मिश्रण स्वीकार है ।
जगत के रचना कार का बड़ा अद्भुत सुन्दर संसार है ।
षड रस में आकंठ भीगा पल पल विषमताओं से घिरा ।
सुगम नहीं राह किसी की, कर्तव्य पथ कंटक से भरा ।
आशा निराशा में डूबता उभरता कभी जीतता कभी हारता ।
किसी में कम किसी में अधिक ये मिश्रण स्वीकार है ।
वैश्विक समीकरण के भिन्नात्माक परिवेश हज़ार हैं ।
जीवन में हर किसी को, एक साथ चाहिए ।
हर ले संताप हृदय का, वो सहृदय हाँथ चाहिए ।
जानता हूँ, प्रति पल का साथ मुश्किल होता है ।
शरीर से नहीं, केवल आत्मिक अनुदान चाहिए ।
जीवन में हर किसी को, एक साथ चाहिए ।