तेरा-मेरा साथ, जीवन भर का…
तेरा-मेरा साथ, जीवनभर का,
दो धागे नहीं पहचान इसकी,
कुदरत ने किया है एक हमें,
सच्चाई यही इस जीवन की।
तेरा मेरा साथ जीवन भर का,
दो धागे नहीं पहचान इसकी…
तुम याद करो जरा बचपन को,
जब सारे मिलजुल रहते थे,
तुम सबकी आंख का तारा थी,
सब तुम पर जान छिड़कते थे,
तुम सिर्फ हमारी बहिन न थी,
खुशियां थी हमारे परिजन की,
तेरा-मेरा साथ जीवन भर का…
तुम नटखट थी, मासूम भी थी,
तुम समझदार नादान भी थी,
तुम मात-पिता और गुरुजन की,
उम्मीद भी थी, अरमान भी थी,
तुम आज भी बिल्कुल वैसी हो,
मधुमय मुस्काती गुड़िया सी,
तेरा-मेरा साथ जीवन भर का,
दो धागे नहीं पहचान इसकी…
तुम आज भी हमको प्रिय हो बहुत,
हम कल भी तुमको चाहेंगे,
तुम हमको भूलने मत देना,
हम तुमको भुला नहीं पायेंगे,
यह इक-दो दिन की बात नहीं,
गाथा है सारे जीवन की,
तेरा-मेरा साथ, जीवन भर का,
दो धागे नहीं पहचान इसकी…
– सुनील सुमन