जीना सिखा दिया
कैसे करू मैं यारा, उस गम की शुक्रिया
तन्हाइ के आलम में जो
जीना सिखा दिया, पीना सिखा दिया |
यू ही तकलीफ की हालत, गुजर जाती है
यू तो चैन से दिन रात, गुजर जाती है।
यू ही बेखौफ जी रहा हु, हरदम हरपल
मुझे लगता ना कभी भी है, मौत से अब डर
है वजह अलग ही इसका, एसी है ये दवा
तन्हाइ के आलम……..
जैसे मंजिल है मिल गई, ये घरी ऐसा
होता महसूस इस घरी मे, जन्नत जैसा
कोई परवाह ना जीवन, की याद आती है
ये जहर तो ज़िंदगी, को बदल जाती है
हर गम को ज़िंदगी से, देता है ये मिटा
तन्हाइ के आलम ………….
✍️ बसंत भगवान राय