तेरा पापा मेरा बाप
बाप
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पहले समय में बाप होते थे,
अब होते हैं पापा।
बाप भांजता जूता सिर पे,
गाल पर दो कण्टापा।
बात बात पर डांट मारता,
यही था उसका ज्ञान।
मुँह लटकाए हम सुन लेते,
न करते अपमान।
तब भी बेटा फक्र मानता,
कुछ दिल पर न लेता।
पैर दबाता कपड़े धोता,
दिल से इज्जत देता।
कहता मेरी खातिर बापू
रात रात भर जागे।
हिचकी भी आ जाए कहीं यदि,
तुरत वैद्य घर भागे।
बाप मेरा परिपक्व है पूरा,
जो करता है सच्चा।
कितना भी मैं बनूँ अक्लमन्द,
उनके आगे कच्चा।
चमड़ी का जूता बनवा दूं
तो भी नहीं उऋन।
जब तक पिता सलामत मेरा,
रहूं अचिंत प्रतिदिन।
यही सोच पीढ़ी दर पीढ़ी,
ईश्वर का दर्जा था।
बाप करे तब था सब उत्तम
कहीं कुछ नहीं हर्जा था।
पापा
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समय बदल गया
ढ़ंग बदल गया,
पिता बन गया पापा।
बाप दुखी है पुत्र दुखी है,
दोनों मन संतापा।
आंग्ल माध्यम शिक्षा लेकर,
सुत जा बसा विदेश।
पापा पीछे पापी बन कर,
सहता बहुत क्लेश।
रहता जीन्स कोट में पापा
पर अंदर से रोता।
सब जन्मे हैं गैर धरा पर,
नाती पोती पोता।
माह में एक दिन फोन कर लिया,
हुई बाप की सेवा।
पापा खाये रूखी सूखी,
बेटा काटे मेवा।
पापा सोचे पुत्र आएगा,
जीता ले यही भ्रम।
बेटा आया लेकिन ये क्या,
ले चला वृद्धाश्रम।
बाप की अब भी चिता जलती है,
बेटा दे मुखाग्नि।
पापा का जब इंतकाल हो,
लकड़ी आती मंगनी।
सोचो लोगों क्या अच्छा है,
करो फैसला आप।
जो तुम्हें भाए उसको चुन लो,
पापा या फिर बाप।
सतीश सृजन, लखनऊ.