तेरा दर मुझे लागे प्यारा
कविता -तेरा दर मुझे लागे प्यारा
शीर्षक–तेरा दर मुझे लागे प्यारा।
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हर दिन है नवरात्र, जीव्हा पर नाम तुम्हारा,
अखंड ज्योति जगती, दरबार सजा है न्यारा,
दीन दुखियों के दुख संकट, होते पल में दूर,
ऐसा सुंदर तेरा दर माँ मुझे लागे है प्यारा ।
सच्चे मन नत ,मस्तक जो भी यहां आया ,
पूरी सभी मुरादे,उसने निरोगी तन भी पाया,
मां की महिमा जिसने भी जानी पहचानी,
लुभा न सकी उसे जग की ढोंगी माया ।
तू ही है आदिशक्ति, तू ही दुर्गा काली ,
दुष्टों का संहार करती,तू है शेरोवाली,
भक्तों के मन, करती सदा ही निवास,
होकर प्रसन्न ,तूं खुशियां बरसाने वाली।
जब-जब धरती पर आपत्ति पल आया ,
तब तब माँ तूने ही हम सबको है बचाया,
लेकर तब अवतारअनेकों इस धरा पर ,
जन कल्याण हेतु ,रौद्र रूप भी दिखाया।
हम तो नादान बहुत, मां तेरा ही सहारा ,
डूबती मानवता को भवसागर से पार उतारा,
सुर नर सभी को, हे अभय दान देने वाली,
शरणागत से कभी छूटे न दरबार तुम्हारा ।
धन दौलत नाम शोहरत तू ही तो देने वाली,
सबकी खाली झोली ,माँ ही भरने वाली ,
संतप्त जो कोई अभागिन फरियाद करें ,
मां सूनी गोद में मन्नते झूलाने वाली ।
तेरे दर अशांत मन को मिले शांति अपारा ,
सब गुण गाए और बोले जय जय कारा ,
ऊंचे पर्वत मन्दिर शीर्ष लहराती प्यारी ध्वजा,
सौगत बाला ये, तेरा दर मुझे लागे प्यारा।
शीला सिंह बिलासपुर हिमाचल प्रदेश ?