तेरा चेहरा नज़र को
कुछ नमी अपने साथ लाता है ।
जब भी तेरा ख़याल आता है ।।
देख कर ही सुकून मिलता है ।
तेरा चेहरा नज़र को भाता है ।।
कुछ भी रहता नहीं है यादों में ।
वक़्त लम्हों में बीत जाता है ।।
रास्तों पर सभी तो चलते हैं ।
कौन मंज़िल को अपनी पाता है ।।
मैं भी हो जाती हूँ ग़ज़ल जैसी ।
वो ग़ज़ल जब कभी सुनाता है ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद