तेरा अस्तित्व ही व्यर्थ है
मैं व्यवस्थाओं और
सारी परंपराओं से जकड़ा रहा
मन से लेकर तन तक
सब कुछ लगा दिया
जीवन भर पेशगी में
सिर्फ़ अपना भाग्य
और
भाग्य विधाता को जगाने में
अंततः मिला क्या मुझे
भाग्य में कुछ है नहीं
भाग्य विधाता की नजरें भी
टेड़ी हैं आजकल मेरे लिए
तूने भी कुछ सोचा नहीं
इस तरह कुछ पाने की
ललक में बिन पाए
मेरा जीवन व्यर्थ ही चला गया ।
नज़र मेरे ऊपर तेरी
कभी अच्छी रही नहीं है
दुआओं की सौगात भी
मुझको कभी मिली नहीं है
सर्वस्व न्यौछावर कर दिया
तूझको जगाने की खातिर
नींद गहरी सो रहा
अभी भी तू जगा नहीं है
तुझे मैं छू नहीं सकता
परछाई मेरी बहुत काली है
डरता है तू मेरे आलिंगन से
और डरते हैं तेरे सिपहसलार
करवा दी है घोषणा
पिटवा दी है मुनादी
आंगन में तेरे
मेरा प्रवेश भी स्वीकार्य नहीं है ।
शायद मैं बहुत खतरनाक है
हो सकता हूं जालिम भी
या फिर कलंकित
इसीलिए तू डरता है
मेरे शरीर की परछाई भर से
लेकिन क्यों डरता नहीं
मेरे खून पसीने से कमाई
धन – दौलत से
जिसे मैं चढ़ा देता हूं
भीड़ में होकर शामिल
तेरे भव्य आशियाने में
रोकता भी नहीं है तू
जब होता है दुराचार
तेरे ही चमचमाते मचान में
लुटती है आबरू अबला की
जो करती है सुबह – शाम
सफ़ाई तेरे गुलिस्तान की ।
क्यों हो जाता है
तू अपवित्र मेरे स्पर्श से
जबकि तेरे विकास की जड़ें
मेरे लहू के कतरे से
सींचीं गई और लहलहाती हैं
मेरे ही धन से चलता है
तेरा घर और परिवार
मेरी अज्ञानता के बल पर
बने हुए हैं ज्ञानवान और
धनवान तेरे सिपहसलार
मेरी वजह से ही है
तेरा नाम और बजूद
फिर भी तू देख सकता नहीं
मेरा शिक्षित होना
मेरा धनवान होना
मेरा सजना – संवरना
मेरा खाना – पीना और
बिंदास जिंदगी जीना
इसलिए मेरी नज़र में
तेरा अस्तित्व ही व्यर्थ है ।
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आर एस आघात