“तेज़ाब”
शरीर ही तो झुलसा है…
रूह में जान अब भी बाकी है..
हिम्मत से लड़ूंगी ज़िन्दगी की लड़ाई
आत्मसम्मान मेरा अब भी बाकी है…
मिटाई है लाली होठों की मेरी
पर होठों की मुस्कान अब भी बाकी है
काली हूँ मैं,मैं दुर्गा भी हूँ
हौसलों में उड़ान अब भी बाकी है…
सूरत को जलाया मेरी को तूने
बदसीरत है तू ये भी बात साँची है
जलेगा सवालों से पल पल तू मेरे
हर सवाल में तेज़ाब अब भी बाकी है
“इंदु रिंकी वर्मा”©