तृष्णा
मन की बात
दिल में आस
होती नहीं पूरी
कभी तृष्णा
इन्सान की
भटकाती है
जिन्दगी को
रखती है
खाली हाथ
इन्सान को
तृष्णा होती
नहीं पूरी
लो शिक्षा
जीवन में
तृष्णा को
मत दो जगह
हो जितनी
चादर
फैलाओ उतने
पैर
दिया जितना
ईश ने
रहो उसी में
संतुष्ट
जीवन में
रहेंगे सुखी
जीवन में
परिवार सहित
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल