तृष्णा उस मृग की भी अब मिटेगी, तुम आवाज तो दो।
ठहरे क़दमों को भी राहें ढूंढ लेंगी, तुम आवाज तो दो,
पत्थरों को भी धड़कनें नई मिलेंगी, तुम आवाज तो दो।
सवेरों में सूरज की रौशनी खिलेगी, तुम आवाज तो दो,
शामें मुलाकातों से फिर सजेंगी, तुम आवाज तो दो।
करवटें सपनों को ढूंढ लेंगी, तुम आवाज तो दो,
बूँदें ओस की फूलों पे फिर गिरेंगी, तुम आवाज तो दो।
फ़ीकी ऋतुएँ रंगों के सजदे करेंगी, तुम आवाज तो दो,
बेहोश जज्बात भी एक दिन जगेंगी, तुम आवाज तो दो।
लहरें किनारों पर नाम हमारा गढ़ेंगी, तुम आवाज तो दो,
लक़ीरें किस्मत से फिर लड़ेंगी, तुम आवाज तो दो।
धरा बारिशों से नम मिलेंगी, तुम आवाज तो दो,
हवाओं संग मोहब्बत वो फिर बहेगी, तुम आवाज तो दो।
घर परिंदों को ढूंढ लेंगी, तुम आवाज तो दो,
नदियाँ पहाड़ों पर फिर मुड़ेंगी, तुम आवाज तो दो।
अँधेरे सितारों का घर बनेंगी, तुम आवाज तो दो,
वादे जन्मों का संग लिखेंगी, तुम आवाज तो दो।
खामोशी शब्दों से बातें करेंगी, तुम आवाज तो दो,
तृष्णा उस मृग की भी अब मिटेगी, तुम आवाज तो दो।