तू है लबड़ा / MUSAFIR BAITHA
दूर की रिश्तेदारी में गया था, तब मैं मैट्रिक पास कर सिविल इंजीनियरी डिप्लोमा के प्रथम वर्ष का छात्र था और मेजबान घर की बाला एक साल पीछे प्रवेशिका में.
उसके एक रिश्तेदार द्वारा एक काम से बुलाए जाने पर मैं अपने कॉलेज हॉस्टल से उस घर में गया था।
और, जैसा कि आमतौर पर होता है, हम दोनों के बीच में किशोर वय जनित एक स्वाभाविक दैहिक आकर्षण संचारित हुआ था, और पहले उस बाला की ओर से ही इस खिंचाव का इजहार हुआ।
घर में एकांत पा मुझे लंच खिलाते हुए उसने मेरे सामने एक पन्ने में कुछ अंग्रेजी अनुवाद के लिए सवाल रखवा दिए अपने छोटे भाई की मार्फ़त. उनमें से कुछ ये थे जो उसके जानते तनिक कठिन थे :
१) घोड़ा सड़क पर अड़ कर भड़क गया.
२) गया गया गया तो गया का गया ही रह गया.
३) छपरा के छप्पू के छप्पर पर छः दिनों से छः छुछुन्दर छुछुआ रहे थे.
४) चन्दन की चाची ने चांदी की चम्मच से उसे चटनी चटाई.
मैंने अपना अनुवाद उपलब्ध करवाई गयी कॉपी के हवाले कर दिया. ये सवाल उन दिनों इलाके के गांव–देहात में वायरल टाइप से चलन में थे. मैं पास हो गया था.
पास होने का एक छुपा इशारा यह कि, उस रात के भोजन में उसने मेरे लाख ना-ना करने के बावजूद रोटियां-सब्जी बाद में भी थाली में बतौर परसन कनखियों से बात करते हुए मुस्कुराहट भरकर रख दी थी, अपने हाथ थाली पर ’ना’ में फैलाने के बावजूद भी मेरे हाथ हटा कर. और, वह छुअन कातिल थी साथ ही उसकी कुछ अदाएं भी!!!
मेरे पास होने का सुबूत यह था कि उस बाला से मेरी नोट बुक के एक कोर में लिखित कॉमेंट मिला था-मुसाफिर… तू है लबड़ा!!! और, यह मैं हॉस्टल में वापस लौटने के बाद कॉपी के कोर में स्याही जैसे लगे होने को देखकर चेक करने पर जान पाया था।