तू मेरी धड़कन बन गयी
तू मेरी धड़कन बन गई
बन गई है तू मेरी हमसफर
तेरे संग ही चलता हूं
मैं हर कदम हर डगर,
तू मेरे पास आती है तो
मुझको जन्नत सी मिल जाती है,
तू दूर जो जाती है
मेरी जान निकल जाती है,
जब तेरा साथ मुझे मिल जाता है,
मेरे अंदर का डर सारा निकल जाता है,
हो कितनी भी परिस्थिति विषम
पर मन नहीं कभी घबराता है,
करके तेरा रसपान क्षण भर में
मानव सिंह बन जाता है,
तुझे पाने के लिए ही मानव
जात-पात ऊंच-नीच का भेद मिटाता है,
मिलबाँट कर खाने पीने का
आनंद भी तेरे संग ही आता है,
तेरे साथ जब मिल जाता
नदी नाले का अंतर मिट जाता है,
कर के अधरों में तेरा स्पर्श मानव
नाली में भी गिर मस्ती के गीत गाता है,
नाली और फुटपाथ में भी
जीवन का सारा आनंद उसे आता है।
शादी हो या पार्टी तेरी तलाश में
मानव मधुशाला जाता है।
कर कर के मधु का पान
अपने जीवन को नर्क बनाता है।
कभी कभी तो तुझे पाने को
पत्नी का मंगलसूत्र भी बेच आता है।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
तिलसहरी कानपुर नगर