तू मेरा श्याम में तेरी बनूं राधिका
चंद्र सी चांदनी बनके चमकती थी में,
दाग़ सीने में तूने लगा क्यों दिया ।
आस दिल में है मैं तेरी बनूं राधिका,
तूने अपना बना के दगा क्यों दिया ।।
ज़ख्म मुझको दिए क्यों बता सांवरे,
तूने सपने सजाके रुला क्यों दिया।
तू मेरा श्याम में तेरी बनूं राधिका,
तूने अपना बनाके भुला क्यों दिया ।।
प्रेम की ज्योति दिलमें जगाई ही क्यों,
तूने जलते दिये को बुझा क्यों दिया ।
घाव दिलके में “कृष्णा” बताऊं किसे,
चोट देकर के तूने खुजा क्यों दिया।।
✍️ कृष्णकांत गुर्जर