तू भी है ..!
रंगीनियाँ हैं मेरे आस पास, तो माहताब तू भी है
है खुश्बू मेरे सोख बदन में तो महकता गुलाब तू भी है
कभी कम नहीं आंका है तुझको मैंने अपने ओहदे से
मेरा अगर जवाब नहीं तो लाजवाब तू भी है
पर्दा नहीं है गर तुझसे तो बेनकाब तू भी है
खुला खुला सा अगर हूँ मैं तो खुली किताब तू भी है
हैरत में पड़ जाते हैं अक़्सर, हम में फ़र्क़ खोजने वाले
नशा है मेरी बातों में तो महकती शराब तू भी है
बहुत लज़ीज हूँ गर मैं तो शुरुरे कवाब तू भी है
पलकों के साये में हूँ मैं तो रातों का ख्वाब तू भी है
बख़्शी हैं खुदाया ने हमको एक जैसी ही खूबियां
मैं बादशाह हूँ जागीरों का तो आलीजनाब तू भी है
मुझमें गर हैं खामियाँ तो थोड़ा खराब तू भी है
लिए हथेली पर मैं दिल, तो चाहत-ए-शवाब तू भी है
कहाँ तक ग़ज़ल बयां करेगी , तेरे मेरे फ़साने को
मेरा गर कोई मोल नहीं तो नायाब तू भी है
……. – हरवंश श्रीवास्तव