तू भी…. मै भी….
मजदूर दिवस पर कुछ कलम घिसाई मैंने भी कर दी आज।
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?मै भी …. तू भी..?.( कलम घिसाई)
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मै मजदूर तू मजदूर।
फिर किस बात का फितूर।
क्या हुआ गर अलग है काम।
मिलते दोनों को न्यारे ही दाम।
यह तो है जमाने का दस्तूर।
फिर किस बात का फितूर।
हाँ तेरा काम माना अभिन्न है।
पौशाक भी मुझसे भिन्न है।
पर पौशाको का क्या गुरुर।
मै मजदूर तू मजदूर।
हाँ इतना सच है जान ले।
राष्ट काम कर रहे मान ले।
राष्ट्र भी यह जानता ज़रूर।
तू भी मजदूर मै भी मजदूर।
हम कुछ अहसान नही करते।
कुछ काम तो सब ही है करते।
फिर काहे होता रे मगरूर।
तू मजदूर मै मजदूर।
दाम कम मिले ज्यादा मिले।
दाम को लेकर क्या गिले।
सो भूल सब जी भरपूर।
काहे का यार फितूर।
जो मजदूरी का रंज मनायेगा।
जमाने के बहुत तंज खायेगा।
सो मत बन आदत से मजबूर।
तू भी…. मै भी….
काम कर खूब बड़ा बन।
काम से आम की तरह तन।
ताकि कोई न कहे खजूर।
मै भी….. तू भी……..
दो जून की रोटी भर पेट।
मिल जाए तो मान ले सेठ।
फिर मिले न मिले मोतीचूर।
मै भी…. तू भी….
रब सबकी सुनता है।
क्यों सर को धुनता है।
मौज कर श्रम सूर।
मै भी …. तू भी…
कभी अहम को रख ताक में।
क्या रखा है फ़िज़ूल धाक में।
फिर देख न तू दूर न में दूर।
तू भी ….मै भी….
******©*मधु गौतम***®