तू बना रह निडर
तू बना रह निडर, सत्य हो जिधर जिधर
कंप-कँपाते पैर से, डगमगाती बेंत से
इस अंधेरी रात में, सूर्योन्मुखी हो नजर
उठ खड़ा हो चल उधर, सत्य हो जिधर-जिधर
क्या हुआ जो झूठ के, हैं घने बादल अभी
और आँधी सत्य की है, छुपी हुई कहीं
सूंघ कर एक श्वास में, रुख हवा की ओर कर
उठ खड़ा हो चल उधर, सत्य हो जिधर-जिधर
हौसले करलो सुदृढ़, राह है खुली हुई
अनवरत चलते रहो, साँझ हो भले अभी
झींगुरों के गीत में, पूरा हो अपना सफर
उठ खड़ा हो चल उधर, सत्य हो जिधर-जिधर
प्रेरणा देती हमें, कूकती कोयल सदा
हो विपत्ति राह, में मीठा बोलना सदा
माँ की आशाए न टूटे, बचपनों को याद कर
उठ खड़ा हो चल उधर, सत्य हो जिधर-जिधर
अंतस्थ पवित्र हो तेरा, हृदय में स्वाभिमान हो
वीरता के कार्य कर, रिम-झिम गुणो के गान हो
ज़िंदगी मे ऐसे लड़, कि देश को गुमान हो
मातृभूमि को तेरे हर, कर्म पर अभिमान हो
तू बना रह निडर, सत्य हो जिधर जिधर
कंप-कँपाते पैर से, डगमगाती बेंत से
उठ खड़ा हो चल उधर सत्य हो जिधर-जिधर
सत्येन्द्र कुमार
खैरथल, जिला-अलवर, राजस्थान