तू बड़ी हो गई पता ही नहीं चला …
अंगुली पकड़ कर चलाते चलाते
जब तूने अंगुली छोड़ी और चलना सीखा
ख़ुश तो मैं बहुत थी , पर तू बड़ी हो गई
ये पता ही नहीं चला …
स्कूल ले जाते जाते जाते
तूने अपने आप कोलेज जाना शुरू किया ,
ख़ुश तो मैं बहुत थी पर तू बड़ी हो गई
ये पता ही नहीं चला …
घर से विदा कर के जब भेजा तुझे ससुराल
पराए घर को अपना समझ सजाते सँवारते देख ,
ख़ुश तो मैं बहुत थी , पर तू बड़ी हो गई
ये पता ही नहीं चला …
अपने घर के आँगन में हँसते गाते हुए
नन्ही जान के आने की तूने जो दी ख़बर ,
ख़ुश तो मैं बहुत थी , पर तू बड़ी हो गई
ये पता ही नहीं चला …
अपनी नन्ही जान के प्यारे क़दमों को सम्भालते हुए
जब तुझे अपनी दुनिया में व्यस्त देखा
ख़ुश तो में बहुत थी पर तू बड़ी हो गई
ये पता ही नहीं चला …
मैं भी तो अपनी आदत से मजबूर थी
तुझको छोटी गुड़िया ही समझती रही
और गुड़िया समझ कर हर पल पूछती बताती रही
पर तू बड़ी हो गई पता ही नहीं चला
तुझे अपनी नई दुनिया में वही सब करते देखा
जो करते करते मैंने अपना जीवन बिताया
ख़ुश तो में बहुत थी पर तू बड़ी हो गई
ये पता ही नहीं चला …
आज मैं जीवन के उस मोड़ पर पहुँची हूँ
जहाँ बताना सीखाना तो बहुत चाहती हूँ
पर कई बार चुप भी हो जाती हूँ
पर तू बड़ी हो गई ये मानना भी नहीं चाहती हूँ…