तू फिर से लड़न को आयी थी…. !!
बेखबर थे जीं अंजानो से, आज मिले गुजरे जमानो से,
कुछ हमदर्द, कुछ सिरदर्द, हमसे मिले ऐसे दिलबर..!!
बात खबर मे आयी थी वो मन ही मन मुस्कुराई थी,
बीती बातो को कुरेदकर, वो मेरी चौखट आयी थी.. !!
कुछ लफ्ज़ो के अंदाज़ बदलकर, वो बात जुबाँ पे लायी थी,
भूल से शायद समझ बैठी, कि…खुद भी एक सौदाई थी.. !!
मेरे कातिल लफ्ज़ो से..जो जख्म मिले बताई रही,
अब ऐसी भी का खुदगर्जी, जो हमसे करी लड़ाई थी!!
ये बात भी हमने शांत मन से बताई थी,
जोन हमसे भई बाते सारी… तोहार गलती-ऐ -भौजाई थी.. !!
एहि लिए ता ओ सजनी, तोहरी चाहत भुलायी थी,
तोहरी भौजाई कि खातिर, तोहसे भई लड़ाई थी..!!
तोहे भुलाने की खातिर, हमने करी सगाई थी,
तोहरी छनिक गलती पर, मोहे उम्र कैद सुनाई थी…!!
और आज भी एहि सजा के खातिर,
तू फिर से लड़न को आयी रही… !!