‘तू-तू मैं-मैं’
संसद में ये तू-तू मैं-मैं वाली प्रथा कब समाप्त होगी ?कब तक हल्का-गुल्ला करके कार्यवाही को स्थगित किया जाता रहेगा ? क्या पक्ष-विपक्ष में मधुर व्यवहार से देश हित के काम नहीं किये जा सकते ? किसी विधेयक का विरोध सिर्फ़ इसलिए न हो कि उसे विपक्षी पार्टी ने रखा है। बल्कि विपक्ष को भी अपने सुझाव रखने चाहिए और सत्ता पक्ष को उसपर भी विचार करना चाहिए।अगर अच्छी नीति हो तो विपक्ष का भी समर्थन हो । सरकार चुन लिए जाने के बाद काम में बाधा उतपन्न करना ठीक नहीं।सभ्यता से , एक दूसरे का सम्मान करते हुए अपना विचार रखा जाये।चुनाव के समय आप अपना अपना घोषणा पत्र जनता के समक्ष रखें । विरोधी पक्ष के घोषणा पत्र की कमियां या हानियाँ बताइए । अपनी पार्टी का प्रचार कीजिए पर रिश्वत के रूप में नहीं । जिसका बहुमत हो उसको काम करने दीजिए।अगर जनता को काम पसंद नहीं आता तो अगली बार आपकी सरकार बन जाएगी। अगर आप उन्हें काम नहीं करने देंगे तो जब आप सत्ता में होंगे तब वो काम नहीं करने देंगे। देश का विकास कैसे होगा? जनता का वोट तो बेकार ही जाता रहेगा।इसलिए सोच और कार्यप्रणाली में सुधार अपेक्षित है।
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