तू ठहर चांद हम आते हैं
तू ठहर चांद हम आते हैं।
तेरी गतिविधियों को लखकर
हम कालचक्र तैयार किए
तुमको मामा-मामा कहकर
बचपन में तुमसे प्यार किए
तेरे नामों का कौर चांद
मम्मी से हमने पाया था
था भरा हुआ यह पेट मगर
फिर भी ऊपर से खाया था
बचपन का वह रिश्ता मामा
पचपन में सहज निभाते हैं
तू ठहर चांद हम आते हैं।
जो पानी हीन तुझे समझे
उसका कहना बेमानी है
हमने ही जग को बतलाया
तुझमें निश्चित ही पानी है
हो खनिज संपदा वाले तुम
हम इसका पता लगाएंगे
कुछ मिला अगर तो उससे हम
जग का कल्याण कराएंगे
मामा से हम धरती मां तक
देखो क्या कुछ ला पाते हैं
तू ठहर चांद हम आते हैं।
तेरी धरती पर आकर जब
हम अपना ध्वज लहराएंगे
भारत माता के माथे पर
तब चार चांद लग जाएंगे
तुम रहो दमकते हर पल ही
अपनी यह चिंता रहती है
लेकिन तुम तो इक छलिया हो
मुर्खों की टोली कहती है
देखो कलंक यह माथे का
कैसे हम आज मिटाते हैं
तू ठहर चांद हम आते हैं।
तुझसे मिलने की चाहत में
झोंकी इक लंबी पूंजी है
असफल हुआ कुछ बार मगर
अब वही सिद्धि की कुंजी है
हैं राह दिखाने वाले हम
दुनिया को यह बतलाएंगे
तुमको आधार बना करके
जब मंगल तक भी जाएंगे
गूंजेगा जनगण तुझ पर भी
जो गीत यहां हम गाते हैं
तू ठहर चांद हम आते हैं।
जयहिंद!
© नंदलाल सिंह ‘कांतिपति’