“तू जो होती”
“तू जो होती”
बस तू जो होती….
तो ज़िंदगी कितनी क़रीब होती!
रफ़्ता-रफ़्ता बढ़ते मंज़िल की तरफ़,
मंज़िल की राह दिख रही होती!
खिलखिला उठती मेरी क़िस्मत,
ज़िंदगी इतनी ख़ूबसूरत सी होती,
कि इसकी हर शाम ही हसीन होती!
…. अजित कर्ण ✍️
“तू जो होती”
बस तू जो होती….
तो ज़िंदगी कितनी क़रीब होती!
रफ़्ता-रफ़्ता बढ़ते मंज़िल की तरफ़,
मंज़िल की राह दिख रही होती!
खिलखिला उठती मेरी क़िस्मत,
ज़िंदगी इतनी ख़ूबसूरत सी होती,
कि इसकी हर शाम ही हसीन होती!
…. अजित कर्ण ✍️