*तू कौन*
एक अबोध बालक
क्षयति इति शरीरः जो पल पल क्षय हो रहा हो पल पल घट रहा हो उसी को शरीर की संज्ञा दी गई है वेद में। माता के गर्भ में भ्रूण के स्वरूप में आते ही उसका विघटन शुरू। और फिर अन्त तक सम्पूर्ण।
कमाल की बात तो ये देखिए इन्सान की मजबूरी जिसको लगातार पालना पोसना पोषण करना तरह तरह के आहार विहार औषधि एवम श्रृंगार से ।
लेकिन ये रुकने वाला नहीं ईश्वर ने इसकी संरचना इस के आदि से लेकर अंत तक इतना ही चार्ज किया गया है जैसे ही चार्ज खत्म खेल खत्म इसको दोबारा रिचार्ज करना नामुमकिन ।
और सबसे बड़े मजे की बात सुनिए उसी शरीर अर्थात जिसका पल पल क्षय हो रहा है, उसी को लेकर इंसान इतराता फिरता है। अनर्गल व्यव्हार करता है आचरण करता है।
ॐ नमो भगवते श्री वासुदेवाय।