तूफान
तूफान…….!!!
उठ रहा जो हृदय मेरे,तीव्र जिसके अति झोंकें।
रेतिले-बर्फीले इस तुफान को कोई तो रोके।
अस्मिता लूटता रहा,मानव तू क्यों दानव सा होके।
ले आज प्रकृति क्रोधित हुई,रुकती नहीं किसी के रोके।
बेरंग प्रकृति को किया,अब आंधी-तूफान ही शेष रहेंगे।
क्लेश इतना बढ़ा दिया क्यूं,तेरे शेष न अवशेष रहेंगे।
विज्ञान भी ओ मूर्ख मानव, हरकतों से तेरी मूक हुआ।
तेरी ही प्रताड़ना से प्रेरित,मां चंडी-काली स्वरूप हुआ।
प्राकृतिक संसाधनों ने हो क्रुद्ध,यम का रूप धरा।
अपने ही कु-कृत्य से ,तू अब मरा और अब मरा।
खग-विहग,तरु विटप वल्लरी,सब विलुप्त हो रहे।
जीव-जंतु मनु तेरे कारण,चिर निद्रा में सुप्त हो रहे।
सुन नीलम,क्या भविष्य गर्भ में,माना किसी को ज्ञात नहीं।
बद से बद्तर कुकृत्य फल है, परिणाम से तू अज्ञात नहीं।
नीलम शर्मा