तूफ़ाँ
तूफ़ाँ
तिनका तिनका जोड़ा था
वो उड़ गया आशियाँ
ज़िंदगी को झकझोरने
आ गया एक और तूफ़ाँ
गरजते बादल, उमड़ता समन्दर
ज़िंदगी को कर उथल पुथल
कैसा प्रलय मचा गया
जित देखूँ उत जल ही जल
सह न सके बवंडर के झकोरे
उजड़ गये पेड़ पौधे घन
टूटी लताएँ,बिखरी शाखाएँ
लुट गया लहराता चित्वन
ये कैसा प्रकृति का प्रहार
क्या सृष्टि ले रही परीक्षा
चारों ओर तबाही का तांडव
ना जाने उसकी क्या इच्छा
रेखा