* तु मेरी शायरी *
डा . अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* तु मेरी शायरी *
झुका कर नजरें जो उस नाजनीना ने नजम अपनी सुनाई है
कसम से मच गया तहलका गजब की तबाही सी मचाई है ||
हरफ – ब – हरफ वो शेर गडती है मिला कर वो गजल लिखती है
अदायें तो जरा देखो उसकी क्या अजीब सी खनक रखती हैं ||
शहर में हो रहा चर्चा हर इक की जुबान तक बात आई है
झुका कर नजरें जो उस नाजनीना ने नजम अपनी सुनाई है ||
है उसकी आबाज में कसक गला उसका वीणा के स्वर जैसा
अदायें दिलरुबा जैसी तो अन्दाज है पखावज की थाप जैसा ||
बासुरी सी स्वर लहरी ने हर एक महफिल में रौनक फैलाई है
झुका कर नजरें जो उस नाजनीना ने नजम अपनी सुनाई है ||
कल रात बीती सपने में मिरे अचानक से आ गई थी वो
बैठ कर पेतीयाने चारपाई के मेरे पैरों को सह्ला रही थी वो ||
सकपका कर जो मैं उठ बैठा तो पाजेब उसकी खंखनाई थी
बज उठे कंगना और चूड़ी एक साथ् जब रुबाई की खूशबू आई थी ||
झुका कर नजरें जो उस नाजनीना ने नजम अपनी सुनाई है
कसम से इस अबोध के दिल में गजब की तबाही सी मचाई है ||