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7 Nov 2020 · 1 min read

तुलसी

कार्तिक महीने में एक बुढिया माई तुलसीजी को सींचती और कहती कि, हे तुलसी माता! सत् की दाता मैं तेरा बिडला सीचती हूँ, मुझे बहु दे, पीताम्बर की धोती दे, मीठा मीठा गास दे, बैकुंठा में वास दे, चटक की चाल दे, पटक की मौत दे, चंदन का काठ दे, रानी सा राज दे, दाल भात का भोजन दे, ग्यारस की मौत दे, कृष्ण जी का कन्धा दे।

तुलसी माता यह सुनकर सूखने लगी तो भगवान ने पूछा कि, हे तुलसी! तुम क्यों सूख़ रही हो?

तुलसी माता ने कहा कि एक बुढिया रोज आती है और यही बात कह जाती है। मैं सब बात तो पूरा कर दूँगी लेकिन कृष्ण का कन्धा कहां से लाऊंगी?

भगवान बोले – जब वो मरेगी तो मैं अपने आप कंधा दे आऊंगा। तू बुढिया माई से कह देना।

बाद में बुढिया माई मर गई। सब लोग आ गये। जब माई को ले जाने लगे तो वह किसी से न उठी। तब भगवान एक बारह बरस के बालक का रूप धारण करके आये।

बालक ने कहा, मैं कान में एक बात कहूँगा तो बुढिया माई उठ जाएगी।

बालक ने कान में कहा, बुढिया माई मन की निकाल ले, पीताम्बर की धोती ले, मीठा मीठा गास ले, बैंकुंठा का वास ले, चटक की चल ले, पटक की मौत ले, कृष्ण जी का कन्धा ले!

यह सुनकर बुढिया माई हल्की हो गई। भगवान ने कन्धा दिया।

Language: Hindi
Tag: लेख
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