तुलसी की पावनता हमने पहचानी है ( गीत) पोस्ट २७
तुलसी की पावनता मैंने पहचानी है ( गीत )
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मेरा मन आकुल है , तेरा मन छूने को ।
काया तो माया है , मैंने भी तो जाना है ।।
चाहों का मेला हो, आह का न क्रंदन हो
नंदन वन ऑगन में माधव – अभिनंदन हो
दिनकर के मनभावन चरणों को छू– छू कर
आमों की मंजरियॉ महकाती मधुवन हों ।
तुलसी की पावनता मैंने पहचानी है ।
चंदन की खुशबू को तुमने पहचाना है ।।
भर जाये घारा यदि रीते मम पनघट को
कर देगी निनिश्चय ही शीतल वह मनघटको
मिल जाये थोड़ी- सी मधुता यदि अमृतमय
कर देगी स्पन्दित आह्लादित तन- घट को ।
संदल की छाँहों में दोनों का प्यार पले ।
झर- झर- झर निर्झर सा मनहर यह गाना है।।है।।
—– जितेंद्रकमलआनंद