तुम
तुम्हारे सुबह के मैसेज की उम्मीद में
अब आंख नहीं खुलती मेरी
ना ही मोमबत्तियों और गुलाब से सजी
टेबल होती है रात के खाने की
अब करवट नहीं बदलता मैं बिस्तर पर
जानने को कि तुम जगी हुई तो नहीं
जब भी तुम मुझे
ढलते सूरज की तस्वीर भेजती थी
याद तुम अपनी दिला जाती थी
और वो आंखों से पानी आ जाने तक हंसना
साथ मिलकर सोफ़े पे मैग्गी खाना
जब मैं परेशान होता था और
सुबह 4 बजे तुम्हें फ़ोन करता था
और तुम्हारा मुझे प्यार से समझाना
तुम्हें भूल जाने के ख़याल से ही
मुझे तुमसे और प्यार हो जाता है
–प्रतीक