तुम
मेरी यादों से उतर गये थे कब से तुम,
फिर ख्वाबों में आ के क्यों सताते हो,
जिन अल्फाज़ों को छोड़ चुकी थी मैं,
बार बार कानों में तुम क्यों दोहराते हो?
जानते थे तुम भी और जानती थी मैं,
बार बार ये तराना क्यों गुनगुनाते हो,
वो जिन ख़्यालों का कोई मतलब नहीं,
बार बार आ के एहसास क्यों जगाते हो?
चले ही गये थे तुम, चले ही जाओ तुम,
बार बार आ के दिल को क्यों बहलाते हो,
कि जान गईं हूँ मैं आओगे नहीं अब तुम,
यूँ चेहरा अपना बार बार क्याें दिखाते हो?
मेरी यादों का आईना मत बनो अब तुम,
बार बार इन्तज़ार के पल क्यों गिनवाते हो,
तुम्हारे बिना जीना सीख ही तो गई थी मैं,
फिर ख्वाबों में आ कर के क्यों सताते हो?