तुम!
तुमसे अगर नाराज़गी जताते हम
हम रुठते फिर गले से लगाते तुम,
एक मौका फिर तुम्हारे पास होता
एक मर्तबा फिर ये दिल दुखाते तुम,
मैं फिर अकेले चलने लगती
फिर कही से मेरे रास्ते आ जाते तुम,
मैं किसी शहर लौट कर न आने के इरादे से चली जाती
मगर फिर किसी बहाने से मुझे वापिस बुलाते तुम,
फिर जब कुछ परेशानी मेरी ज़िन्दगी में आती
यकीन है मुझे उन दिनो नजर ना आते तुम।
~ गरिमा प्रसाद 🥀