तुम
मैं पथिक बेखबर राहों की,
आशा की हो नव ऊषा तुम l
यूं रोक कदम देखता रहूं,
सुरमई व मोहक संध्या तुम l
मैं जेठ झुलसता मरुथल सा,
झुरमुट दरख्तों की छांव तुम l
मैं गुमसुम अजनबी शहर सा,
ख्वाबों सा गुलज़ार गांव तुम l
एक स्पर्श से सुकून अनंत,
जाड़ों के हो नेह धूप तुम l
मैं धूसर सा न कशिश कोई,
दुनिया में सबसे अनूप तुम l
तुम्हें देख मन थिरके झूमें,
सावन की रुमझुम बारिश तुम l
क्यों खो ना जाए आख़िर हम ?
पहला उत्सव की आतिश तुम l
✍️ दुष्यंत कुमार पटेल