तुम हो
तुम हो
मेरी नींदों में तुम हो
मेरे ख्वाबों में तुम हो
कैसे कहूँ ये बात तुम्हे मैं
मेरे मन के मंदिर में तुम हो
भोर की लालिमा में तुम हो
दोपहर की धूप में तुम हो
मेरे जीवन में दे जो ठंडक
साँझ की शीतलता तुम हो
भौरों की गुंजन में तुम हो
पपीहे की पीयू में तुम हो
कानों में प्रेम रस जो घोलती
कोयल की कुहू कुहू तुम हो
प्रेम सुधा का पान कराती
हृदय में बसी प्रेयसी तुम हो
जीवन पथ पर राह जो दिखाती
मेरी पथ प्रदर्शक तुम हो
मेरी तो जिंदगी ही तुम हो
मेरे लिए हर डगर भी तुम हो
जब भी उदास होता जो हूँ मैं
मेरे लिए हर खुशी तुम हो
मेरे होने की वज़ह ही तुम हो
मेरे जीने की वज़ह भी तुम हो
कैसे तुमको बतलाऊँ मैं प्रिये
सारे प्रश्नों का उत्तर भी तुम हो
संजय श्रीवास्तव
BALAGHAT ( म प्र)