तुम होतीं तो
शीर्षक: तुम होतीं तो
तुम होतीं तो राहें आसान होतीं
तुम होतीं तो मंजिलें और आसान होतीं
दुःख में होतीं न होतीं कोई बात न थी
काश मेरी खुशियों में तुम शामिल होतीं
सुबह को नींद से जगाती तुम
और मैं तुम्हारे आंचल को ओढ़
फिर सोने का बहाना करता
करतीं तुम मुस्कुराकर विदा घर से
और मैं आॅफिस न जाने का बहाना करता
शरारतें कई सीने में मचलती होतीं
तुम होतीं तो राहें आसान होतीं
तुम होतीं तो मंजिलें और आसान होतीं
दुःख में होतीं न होतीं कोई बात न थी
काश मेरी खुशियों में तुम शामिल होतीं
शाम को लौटता जब मैं घर
थका सा मुरझाया सा
पानी का गिलास थामे
और मुस्कुराती हुई आतीं तुम
भूल जाता मैं सब कुछ
और फिर से तरो ताजा हो जाता
जब तुम पानी का गिलास
मेरे होठों से लगातीं
आंखों से आंखों की हजार बातें होतीं
तुम होतीं तो राहें आसान होतीं
तुम होतीं तो मंजिलें और आसान होतीं
दुःख में होतीं न होतीं कोई बात न थी
काश मेरी खुशियों में तुम शामिल होतीं
‘घर’ होता ये खाली सा मकान
आंगन महकती फुलबारी होता
लोरियां सुनाता मैं भी नन्हीं सी परी को
और तुम अपने लाडले को कहानी सुनातीं
होता छोटा-सा परिवार
खुशियां जमाने की होतीं
सीने में भविष्य की कई उम्मीदें होतीं
तुम होतीं तो राहें आसान होतीं
तुम होतीं तो मंजिलें और आसान होतीं
दुःख में होतीं न होतीं कोई बात न थी
काश मेरी खुशियों में तुम शामिल होतीं
~ मनोज कुमार “मंजू”
मैनपुरी, उत्तर प्रदेश