*** तुम से घर गुलज़ार हुआ ***
*** तुम से घर गुलज़ार हुआ ***
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उन से जब से है तकरार हुआ,
उनका अब तक ना दीदार हुआ।
ज्यों ही वो नजरों से दूर हुई,
बेगाना हम से संसार हुआ।
जलता रहता है मन और बदन,
ऐसा कोई क्या बद कार हुआ।
सुन लो लोगो की अपनी न कहो,
बेबस हो कर मैं लाचार हुआ।
मनसीरत ने देखा घोर जहां,
तुम से ही तो घर गुलज़ार हुआ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)