तुम सा कोई महबूब नही है
*** तुम से कोई महबूब नहीं है ***
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तुम सा कोई प्यारा महबूब नहीं है,
तुम बिन कोई हमारा कबूल नहीं है।
जी लेंगे तेरी यादों के साये में हम,
तुम गर करो किनारा भूल नहीं है।
बग़ल में रह दखल करता है अपना,
आस्तीन के सांप जैसा शूल नहीं है।
बिना मूल को छेड़े हो रही है गुज़र,
ब्याज जितना सहारा मूल नहीं है।
इक पल की नहीं फुर्सत मनसीरत,
आशिकों के जैसा मशगूल नहीं है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)