तुम साथ हो।
जो तुम साथ हो तो मुझे गम नहीं
चाँद हो तुम अगर तो चाँदनी कम नहीं
जिंदगी भी गुजर जायेगी इसी सोच में
तुम मिले मुझसे तो वो खुदा कम नहीं
ख्वाब इन आंखों में अब तुम सजाती रहो
मैं तुम्हें चाहूँ और तुम अपने पास बुलाती रहो
मुझे देखकर हया से अपनी पलकें झुकाती रहो
कहीं गिर भी जाऊँ तो हाथ देकर मुझे उठाती रहो
सर रख के आँचल में फूल मुझ पर गिराती रहो
इन हंसी वादीयों में अपने सीने से लगाती रहो
जो छोड़ जाये अकेले तो वो हम नहीं
हमें दूर कर दे ये जमाने में तो दम नहीं
मेरी राहों में अपने दामन की खुशियाँ बिछाती रहो
बन के छाया मेरी खातिर कड़ी धूप में भी आती रहो
अपना दिल हार के मेरी जंग में जीत दिलाती रहो
मुझ में ही घुल जाओ इस कदर तुम समाती रहो
जिंदगानी के सफर में साथ मिल के कदम बढ़ाती रहो
इतना अच्छा ये रिश्ता दिल से सदा निभाती रहो
जो खुशियाँ मिली है ये आंखे तो नम नहीं
उठा लूं जो गम तेरे तो कोई सितम नहीं
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख
अनुराग से ओतप्रोत भावना लिए हुए
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा बिलासपुर छ.ग.