तुम साथ दोगे अगर
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चलो ले चलूँ,
अपने शब्दों को,
सकारात्मकता की ओर,
तुम साथ दो अगर,
चल पड़ेंगीं कविताएँ भी,
अमावस से पूनम की तरफ,
तुम साथ होंगे अगर,
तो अधिकार मेरा भी होगा,
आँगन में उतर आई,
एक टुकड़ा धूप पर,
प्रज्ज्वलित करूंगी,
धूप के उस टुकड़े से,
एक दिया हर अंधेरी रात में,
रख लूंगी मन की देहरी पर,
तुम साथ दोगे अगर,
टिक नहीं पाएंगे ये अंधेरे,
सिर्फ आलोक ही आलोक होगा,
मेरे भीतर और बाहर चहुँओर।
वर्षा श्रीवास्तव”अनीद्या”