“तुम सबला हो”
“तुम सबला हो”
नारी ! तुम अबला नही, तुम सबला हो
तुम देह से सुकोमल सही,
पर मन से सुदृढ हो
तुम सबके तानों को भी
हँस कर सह जाती हो
तुम अपमान के कडवे घूंट भी,
शर्बत सा पी जाती हो
इसीलिए नहीं, की तुम अबला हो
क्यूंकि तुम त्याग,प्रेम,ममता की मूरत हो
नारी ! तुम अबला नही, तुम सबला हो
आँखों में आँसू लिए
अथाह दर्द धारण किये
तुमने हँसते-हँसते अपने सब काम किए
इसीलिए नही, कि तुम अबला हो
क्यूंकि तुम अपना फर्ज निभाना जानती हो
नारी ! तुम अबला नही तुम सबला हो
तुम्हारा सौंदर्य अनमोल है,
तब भी तुम,सदियों से बिकती आई हो
चरित्र लाख, पावन सही
पर अग्नि परिक्षा देती आई हो
इसीलिए नही की तुम अबला हो
क्यूंकि, तुम अपनी मर्यादा निभाना जानती हो
नारी ! तुम अबला नहीं, तुम सबला हो।
तुम अपने जीवन का दाव लगा देती हो
सबको खुश रखने और बनाने में
कोई जान ना पाएगा,
क्या है तुम्हारे मन के खज़ाने में
यूँही सफर बीत जाएगा,
साँझ ढले मन का पंछी फड़फड़ाएगा
क्यूंकि तुम्हीं को पता है, कि तुम सबला हो
हे नारी ! जागो, जिंदगी तुम्हारी भी है
स्वाभिमान से सर उठाकर कह सको,
मर्जी तुम्हारी भी है
अपने अस्तित्व को जानो पहचानो,
आत्मनिर्भर बनो
बता दो सकल संसार को, कि तुम कमजोर नही
तुम सबला हो, कोई अबला नही
हे नारी! तुम सबला हो, तुम सबला हो।
✍वैशाली
4.3.2021
जकार्ता