तुम वसंत
तुम वसंत मेरे बन आये, फिर सूखी बगिया में फूल खिलाए।
तुम बिन था जीवन पतझड़, दिल की कली भी थे मुरझाए।।
चाह न बाकी, राह न बाकी, नीरस सा हुआ जीवन बोझिल।
पर तुम हरियाली उपवन में लाए, मुझको प्रीत के रंग लगाए।।
अब आये हो तो वादा करना, बन नेह सुधा का वर्षा करना।
अपने मन्द हँसी के पवन वेग से, मुझको सदा शीतल करना।।
झंकार नूपुर सी तेरी बोली, मुझे भंवरो की गुंजन सी लगती।
इस प्रेममयी शहद सी धुन, अमृत रस कानों में घोला करना।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ३०/०१/२०२०)