कभी भूल से भी तुम आ जाओ
हे, प्राण प्रिये, समझा जाओ
कभी,भूल से भी तुम आ जाओ
जगमग,जगमग उजियाला हो
न कलुष हो, न मन काला हो
तुम पीर भुलाकर वर्षों की
कभी, प्रेम सुधा बरसा जाओ
कभी भूल ……………………..
हृदय, फूट -फूट जो रोए हैं
मन के, तरंग जो सोये हैं
नीरस मलिन इस बस्ती में
कभी, उनको पुनः जगा जाओ
कभी भूल ………………………
सावन बन नयना बरस रहें
प्रियतम दर्शन को तरस रहें
तुम बिन सूना उर आंगन है
कभी,स्नेह के सुमन खिला जाओ
कभी भूल ……………………….
क़ैद सलाखों के वश हो
या,अंतस में अमावस हो
जीवन में पसरा अंधियारा
कभी,ज्योति के दीप जला जाओ
कभी भूल …………………………
बगिया सूनी है माली बिन
यादों में बीते कितने दिन
इन, ख़्वाब सजाये आंखों को
कभी,एक झलक दिखला जाओ
कभी भूल …………………………
अंखियां राह देख पथराई है
भूली – बिसरी याद आई है
वर्षों से प्यासी बिरहन की
कभी,आकर प्यास बुझा जाओ
कभी भूल ………………………..
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता-मऊ (उ.प्र.)