“तुम लौट आओ”
” तुम लौट आओ”
वो सुर्ख़ ग़ुलाब
जो थामा था तुमने हाथ में
संग-संग चलने का
किया वायदा था चाँदनी रात में
वो कसमें , वो वायदे
मुझको सब कुछ याद हैं………..!
तुम लौट आओ………..
तुम्हारी सब निशानिया
नजरें चुराना, छुईमुई सा शर्माना
आग़ोश की सरगर्मियां
झील के उस छोर की
वो मुलाकातें, वो कहानियाँ
मुझको सब कुछ याद हैं !
तुम लौट आओ………..
वो शाम-ए-सहर
वो सावन की बरसातें
वो उल्फ़त,वो चाहत
दिल में सुगबुगाहट
भीगे-भीगे पल,बहकी-बहकी बातें !
याद हैं सब मुझको
बासंती, मदमस्त पवन
खिलखिलाते पंखुड़ियों से
लब पुलकित,मदहोश नयन
बिखरी झुलफें झूमें ज्यों घटा सावन
हां सब मुझको याद है………!
तुम लौट आओ……….
तेरी पायलों की खनक
भवरों की गुनगुन
अपलक निहारना
मुझे मन ही मन
नहीं भुला हूँ अब तक
उन हँसी लम्हों की छुअन !
वही आसमाँ, वही जमीं
महफ़िल है जवाँ, और हंसीं-हसी
सुर्ख़ गुलाबों में भी नमी
क़ायनात गवाह है,साँसें हैं थमी !
तुम लौट आओ
तुम लौट आओ कि
ग़ुलाब फिर से खिल गये हैं……….!
©कुलदीप दहिया ” मरजाणा दीप ”
हिसार ( हरियाणा )
संपर्क सूत्र -9050956788