तुम लौट आओ ना
मैं आज भी हूँ वही
जहां ठहरा था वक़्त भी
तेरे -मेरे लिए
सिफारिशें कर रही है हवाएं फिर आज
जैसे बहका गई थी तुम्हारे केशो को
हवाओं ने
फिर उसे बहकाओ ना
तुम्हारे चित्र को उकेरूं फिर से
आज फिर से दिख जाओ ना
ख़ता है क्या मेरी
किस वाक्ये ने खफ़ा क्या तुम्हें
आज बता जाओ ना
तुम्हारे होने के एहसासों का आभास
अपनी उंगलियों के नाखूनों से दे जाओ ना
तुम्हारे यादो के संदूक को
आज भी बंद कर रखा है मैंने
तुम आ के खोल जाओ ना
मेरे जिस्म की रूह बन कर क्यों चली गयी
ज़िन्दगी बनकर
तुम लौट आओ ना—अभिषेक राजहंस