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6 Feb 2022 · 1 min read

तुम लेखक नहीं

तुम लेखक नहीं

सिर्फ तुम ही नहीं
तुम से पूर्व भी थी
पूरी जमात भांडों की

जो करते रहे ता था थै या
दरबारों की धुन पर
चाटते रहे पत्तल
सियासी दस्तरखान पर
हिलाते रहे दुम
सियासी इशारों पर
चंद रियायतों के लिए
चंद सम्मान-पत्रों के लिए
करते रहे कत्ल
जनभावनाओं का
करते रहे अनसुना
करुण चीखों को
करते रहे नजर अंदाज
अंतिम पायदान के
व्यक्ति की पीड़ा

तुम लेखक नहीं
नर पिचास हो।

-विनोद सिल्ला©

Language: Hindi
1 Like · 140 Views
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