तुम मेरे प्राण
मै जर्जर नौका का नाविक और तुम ही मेरा किनारा हो
वह कौन अभागा होगा जो सचमुच न हुआ तुम्हारा हो
कृशकाय हुआ है तन तो क्या काया तो नश्वर चोला है
मन मे चिरयुवा उमंगें हैं फिरता यह डोला डोला है
जीता जो मन से जीत गया हारा जो मन से हारा हो
वह कौन अभागा होगा जो सचमुच न हुआ तुम्हारा हो
तुम सूर्यरश्मि या विधुकिरण मै अब तक समझ नही पाया
तुम वही चिरंतन रागिनी हो जिसको अंतर्ध्वनि ने गाया
तुमही श्वासों की सरगम का निशिदिन बजता इकतारा हो
वह कौन अभागा होगा जो सचमुच न हुआ तुम्हारा हो